वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ धवलां परिधानेन ललितया सुस्मितां। नानालङ्कार भूषितां ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
ब्रह्मचारिणी देवी की महिमा और इतिहास |
नवरात्रि की दूसरी शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी हिंदू धर्म में नवदुर्गा की दूसरी स्वरूपा हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। उनका नाम दो संस्कृत शब्दों से बना है, ‘ब्रह्म’ और ‘चारिणी’। देवी पार्वती के इस रूप में, वह एक तपस्विनी हैं, जो शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करती हैं। इस ब्लॉग में हम देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे, जिसमें उनकी पौराणिक कथाएं, पूजा विधि, और उनके महत्व को विस्तार से समझाया जाएगा।
देवी ब्रह्मचारिणी का अर्थ और उत्पत्ति
‘ब्रह्मचारिणी’ शब्द दो प्रमुख संस्कृत शब्दों से लिया गया है: ब्रह्म का अर्थ है “सर्वव्यापी सत्य, परम आत्मा।” चारिणी का अर्थ है “जो अनुसरण करती है।” इस प्रकार ब्रह्मचारिणी वह देवी हैं जो ब्रह्म या आध्यात्मिक ज्ञान का अनुसरण करती हैं। उनके इस स्वरूप में तपस्या और त्याग का महत्व है। देवी ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र पहनती हैं, और उनके हाथों में जप माला और कमंडल होता है, जो तप और संयम का प्रतीक है।
देवी ब्रह्मचारिणी की कथा
पार्वती का तप और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने की साधना कथा के अनुसार, पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। पार्वती के माता-पिता ने उन्हें इस मार्ग से विमुख करने का प्रयास किया, क्योंकि शिव का जीवन पूर्णत: साधना, त्याग और योग में बसा हुआ था। लेकिन पार्वती ने दृढ़ निश्चय किया और भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या प्रारंभ की। 5000 वर्षों का तप इस कठिन तपस्या के दौरान देवी पार्वती ने 5000 वर्षों तक केवल बेलपत्र और नदी के जल का सेवन किया। यह अवधि ऐसी थी जब उन्होंने पूर्ण संयम और तप के साथ अपनी इच्छा को सिद्ध किया। इस तपस्या में देवी ने भगवान शिव के समान जीवन-शैली अपनाई, जो ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप का प्रमुख प्रतीक है।
कामदेव और शिव की कथा
जब पार्वती भगवान शिव के लिए तपस्या कर रही थीं, तो देवताओं को यह चिंता सताने लगी कि शिव का विवाह पार्वती से नहीं होगा और इसका परिणाम दुनिया के लिए विनाशकारी हो सकता है। अतः देवताओं ने कामदेव से शिव को आकर्षित करने की विनती की। कामदेव ने अपने बाण से भगवान शिव को मोहने का प्रयास किया, लेकिन शिव ने अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। पार्वती की अडिग निष्ठा इस घटना के बाद भी पार्वती ने हार नहीं मानी और अपनी तपस्या जारी रखी। वह पर्वतों पर रहती थीं और योग, ध्यान और साधना करती थीं। यह तपस्विनी रूप ही ब्रह्मचारिणी का प्रतीक है। उनकी निष्ठा और तपस्या ने अंततः भगवान शिव का ध्यान आकर्षित किया।
प्रकंदासुर का आक्रमण
जब पार्वती अपनी तपस्या के अंतिम चरण में थीं, तब एक राक्षस प्रकंदासुर ने उन पर आक्रमण किया। उस समय पार्वती इतनी गहन ध्यान में थीं कि वह अपनी रक्षा नहीं कर सकीं। लेकिन उनके पास रखा कमंडल भूमि पर गिर गया और उससे एक बाढ़ उत्पन्न हुई, जिसने सभी राक्षसों को बहा दिया। अंत में, जब पार्वती ने अपनी आंखें खोलीं, तो उनके तेज से राक्षस भस्म हो गया। शिव का ब्रह्मचारी रूप में आगमन पार्वती की तपस्या से प्रभावित होकर शिव ब्रह्मचारी के वेश में उनके पास आए। उन्होंने पार्वती की बुद्धिमत्ता और तपस्या की परीक्षा ली। उन्होंने पार्वती से कठिन प्रश्न पूछे, लेकिन पार्वती ने सभी का सही उत्तर दिया। अंत में, शिव ने अपना असली रूप प्रकट किया और पार्वती को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी का यह रूप नारी की तपस्या, निष्ठा और धैर्य का प्रतीक है।
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन सफेद वस्त्र पहनने और देवी को सफेद फूल अर्पित करने का विशेष महत्व है। साधक को इस दिन अपने मन को साधन चक्र में स्थित करना चाहिए, जिससे उसकी आत्मा शुद्ध होती है और उसे ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक महत्व
देवी ब्रह्मचारिणी का तपस्या से गहरा संबंध है। उनके इस रूप में तप, साधना और ध्यान का विशेष महत्व है। यह रूप हमें सिखाता है कि किस प्रकार एक साधक को आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण की आवश्यकता होती है। ब्रह्मचारिणी देवी के पूजन से साधक के स्वाधिष्ठान चक्र का जागरण होता है। यह चक्र हमारी भावनाओं और रचनात्मकता का केंद्र होता है, और इस चक्र का जागरण साधक को आत्मिक शांति और शक्ति प्रदान करता है।
देवी की प्रार्थनाएं
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा में निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण विशेष फलदायक माना जाता है: मंत्र: ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः। प्रार्थना: दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ इन मंत्रों का जाप करने से साधक को आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है, और उसकी तपस्या का फल मिलता है।
प्रमुख मंदिर
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हनुमानगंज स्थित ब्रह्मचारिणी देवी मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर में नवरात्रि के समय विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन किया जाता है। देशभर के श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
देवी की आराधना
नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिसमें ब्रह्मचारिणी देवी का दूसरा स्थान है। नवरात्रि के दूसरे दिन विशेष रूप से साधक अपने मन को शुद्ध रखते हुए ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। इस दिन माता को दूध, दही, और सफेद मिष्ठान अर्पित किया जाता है। यह दिन शक्ति और साधना का प्रतीक माना जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी की शिक्षाएं (शब्द गणना: 500) देवी ब्रह्मचारिणी हमें यह सिखाती हैं कि सच्ची साधना और तप से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है। यह रूप हमें संयम, त्याग और निष्ठा की महत्ता समझाता है। जिन लोगों के जीवन में कठिनाइयां हैं, उन्हें देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए ताकि वे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकें।
देवी ब्रह्मचारिणी का जीवन हमें न केवल तपस्या और संयम की महत्ता सिखाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि कैसे दृढ़ संकल्प और निष्ठा से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा हमें यह अवसर प्रदान करती है कि हम अपने जीवन को तप और साधना के मार्ग पर ले जाएं। उनकी कृपा से हम सभी को आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।