कपिलेश्वर शिवधाम:
श्री 108 अत्यंत प्राचीन कपिलेश्वर नाथ महादेव मंदिर रहिका प्रखंड मुख्यालय से लगभग तीन किमी दूर है। यह मंदिर कहा जाता है कि कपिल मुनी ने बनाया था। सालों भर यहां भारी संख्या में लोगों ने दर्शन-पूजन और जलाभिषेक किया है। यहां हर साल श्रावण महीने में एक महीने तक श्रावणी मेला भी होता है। उस महीने के प्रत्येक सोमवारी को लाखों कांवड़ियों द्वारा कमला नदी, जयनगर अनुमंडल मुख्यालय से लगभग ३० किमी की दूरी पर, कांवड़ में पवित्र जल भरकर कपिलेश्वर नाथ महादेव को जलाभिषेक किया जाता है। उक्त स्थान पर हर महीने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।
पहुंचने का तरीका:
कपिलेश्वर शिवधाम को मधुबनी जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर पश्चिम में तीन पक्की सड़कों से पहुंचा जा सकता है: मधुबनी बरास्ते रहिका, मधुबनी-ककरौल चौक-कपिलेश्वर स्थान, और मधुबनी-सीमा-कपिलेश्वर स्थान। राजधानी पटना से जयनगर वरास्ते रहिका जाने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर बस या अन्य परिवहन से जा सकते हैं। यह धाम सड़क के किनारे है।
मिथिला का सबसे बड़ा सिद्धतीर्थ बाबा कपिलेश्वर शिवधाम है। इन्हें मिथिला के बैद्यनाथ भी कहा जाता है। यहाँ कपिल मुनि ने कठोर तपस्या करके शिव को प्रसन्न करके सिद्धि प्राप्त की. फिर उन्होंने सांख्य शास्त्र के जटिल सूत्रों को बनाया, जो प्रकृति और पुरूष की सत्ता को मानव सृष्टि की रचना में सिद्ध करते थे।यह स्थान महत्वपूर्ण न केवल कपिल मुनि द्वारा स्थापित शिवालय के कारण है; पुराणों के अनुसार, यह सुखवास की राजधानी या राजा जनक की मुख्य दक्षिणी सीमा पर है।
पौराणिक महत्व :
मिथिलापुरी को महर्षि कर्दम और देवहुति के आत्मज कपिल मुनि, जो विष्णु के अवतार कहे जाते हैं, ने दक्षपुत्री सती के शरीरांश गिरने और गिरिराज किशोरी पार्वती का जन्मस्थान होने के कारण बहुत पवित्र मानकर यहाँ आश्रम बनाया. पवित्र कमला नदी के किनारे। जहां कपिल ने ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक शिवलिंग बनाया, जिसे कपिलेश्वर कहा जाता था। सहस्त्राब्दियों से इस शिवलिंग पूजन की परंपरा चली आती है। महाभारत में उन्होंने कहा कि कपिलेश्वर तत: प्राह सांख्यर्षिदेव सम्मत:, मया जग्मान्यनेकानि भक्त्या चाराधिता भव:, प्रीतश्च भगवान ज्ञानं ददौ भवान्तकम्। विभिन्न प्राचीन ग्रंथों, जैसे वृहद विष्णपुराण, श्वेताश्वतर उपनिषद, यामलसारोद्धार तंत्र, कपिल व कपिलेश्वर लिंग का वर्णन करते हैं।एक स्थान पर लिखा है कि शिव सीताराम की शादी में जनकपुर गए थे। इससे इस शिवलिंग की प्राचीनता सिद्ध होती है। विद्धानों की राय में कपिलेश्वर: महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन कपिल को बुद्ध के बाद मानते हैं, लेकिन गार्वे कपिल को बुद्ध से पहले का एक ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं। डॉ. राधाकृष्णन सहित कई विद्वानों का मानना है कि कपिल बुद्ध एक प्राचीन सांख्यकार थे। गीता और रामायण के अनुसार, कपिलेश्वर शिव भी बहुत पुराने ऋषि थे। सीता को कपिल की बहन अनसूया ने अपने घर पर उपदेश दिए थे। मुनिवर कपिल मधुबनी के समीन ककरौल गांव के निवासी थे, जैसा कि ऐतिहासिक प्रमाणों और जनश्रुतियों से पता चलता है। उनका प्रसिद्ध आश्रम वहीं था। कत युग सहस वयस वहि गेला, महाकवि विद्यापति ने कहा है।कहा जाता है कि महाकवि विद्यापति का जन्म आशुतोष कपिलेश्वर की कृपाप्रसादात स्वरूप हुआ।
कपिलेश्वर कहते हैं कि कर्म मोक्ष प्रदान करता है:
बाबा कपिलेश्वर नाथ को आम लोग मोक्ष का प्रतीक मानते हैं। कपिलेश्वर बाबा जगत के स्वामी, जगत किसान, त्रिभुवन दाता, संतान दाता, धान्य दाता, पशुपति, रोगशोक नाशक बैद्यनाथ और अधम उद्धारक के रूप में प्रसिद्ध हैं। लाखों कांवरिए सावन में आते हैं: लाखों लोग सावन के सोमवारी को कमला नदी से कांवर में जल लेकर जलाभिषेक करते हैं. यह कांवर जिले के जयनगर से आता है। जो यहां से ३० किलोमीटर दूर है। दरभगा महाराज इस मंदिर का धार्मिक ट्रस्ट है। महाराज दरभंगा ने 25 एकड़ का बड़ा सरोवर बनाने के लिए 75 एकड़ जमीन दी।
दान और उपहार से विकास:
कपिलेश्वर शिवालय परिसर का विकास चढ़ावा और मनौती पूरी होने पर दिए गए दान से होता है। मंदिर की देखरेख, पूजा-अर्चना करना आदि पंडों की जिम्मेदारी है। दरभंगा राज ने शिवोत्तर क्षेत्र को गुजारा के लिए दिया है। लेकिन पांच सौ वर्षों में परिवारों की संख्या में वृद्धि और जमींदारी उन्मूलन के बाद रैयती कानून में बदलाव के कारण शिवोत्तर भूमि अब बहुत कम है। शिवालय के आसपास पर्याप्त देख रेख की कमी से शिवोत्तर क्षेत्र अतिक्रमित है। सावन व शिवरात्रि में शिवभक्तों को मंदिर जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि मंदिर के चहुंओर कई दुकाने बनाई गई हैं। धर्मशाला नहीं रहने से रात में विश्राम करना मुमकिन नहीं है।