"ॐ काली कालरात्रि महाक्रूर कालिके स्वाहा।"
माँ कालरात्रि देवी महात्म्य में वर्णित नवदुर्गा की सातवीं रूप हैं। इन्हें “काली रात” के नाम से भी जाना जाता है। यह देवी सबसे भयानक और विध्वंसक रूपों में से एक मानी जाती हैं, जो सभी दानवों, भूतों और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में इनकी पूजा विशेष रूप से होती है, और सातवें दिन इनकी आराधना की जाती है।
मां कालरात्रि का रंग काला है, जो रात की गहराई को दर्शाता है। उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें से बाएं हाथ में एक कटारी और दाईं ओर वरद और अभय मुद्रा होती हैं। उनकी आंखें तीन हैं, जो बिजली की तरह चमकती हैं, और उनके नथुने से आग की लपटें निकलती हैं। उनका वाहन एक गधा है, जिसे कभी-कभी शव भी माना जाता है।
माँ कालरात्रि का नाम भी कई अर्थों में महत्वपूर्ण है:
- “काल” का अर्थ है समय, और “रात्रि” का अर्थ है रात। अतः माँ का नाम कालरात्रि उस रात के रूप में है, जो हर अंधकार का अंत करती है।
- कालरात्रि का एक अन्य अर्थ है- “जो समय की परिधि से परे हैं।”
माँ कालरात्रि
माँ कालरात्रि का उल्लेख भारतीय पुराणों में मिलता है। उन्हें माँ दुर्गा का एक रूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब धरती पर राक्षसों और दुष्ट आत्माओं का आतंक बढ़ गया, तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मिलकर देवी दुर्गा को उत्पन्न किया। देवी दुर्गा ने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर असुरों का संहार किया। माँ कालरात्रि का रूप उनके सबसे भयावह और शक्तिशाली रूपों में से एक है।
कहा जाता है कि माँ कालरात्रि का जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था – वह असुरों का नाश कर मानवता की रक्षा करना चाहती थीं। जब महिषासुर ने देवी दुर्गा को चुनौती दी, तब उन्होंने अपनी शक्ति को जागृत किया और महिषासुर का वध किया। इसी प्रकार, माँ कालरात्रि ने अन्य असुरों जैसे राक्षस रुद्र, कालिया, और अन्य को भी अपने शक्तिशाली रूप से पराजित किया।
माँ कालरात्रि के नाम में “काल” और “रात्रि” दोनों का अर्थ छिपा है। “काल” का अर्थ है समय या मृत्यु, जबकि “रात्रि” का अर्थ है रात। इसलिए, माँ कालरात्रि को “काल के रात्रि” के रूप में जाना जाता है। उनके नाम का अर्थ है वह देवी, जो समय और मृत्यु को परास्त करने में सक्षम हैं। यह दर्शाता है कि माँ कालरात्रि जीवन और मृत्यु के बीच का संतुलन बनाए रखती हैं।
मंत्र और स्तुति
नवरात्रि के दौरान, खासकर मां कालरात्रि के दिन, भक्त उन्हें विशेष श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं। पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जाता है:
- मंत्र:
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः
- ध्यान मंत्र:
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
पूजा
माँ कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से की जाती है। भक्तगण दिनभर उपवास रखते हैं और रात्रि को जागरण करते हैं। पूजा के दौरान दीप जलाए जाते हैं, फल-फूल अर्पित किए जाते हैं और भोग चढ़ाए जाते हैं। भक्तगण अपनी समस्याओं का समाधान माँ कालरात्रि से मांगते हैं।
माँ कालरात्रि की महिमा अद्भुत है। कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं, माँ कालरात्रि उन्हें सभी बुराइयों और संकटों से दूर रखती हैं। वह अपने भक्तों को सभी कठिनाइयों से उबारती हैं और जीवन में सुख और समृद्धि लाती हैं।
पौराणिक कथा
माँ से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। एक समय की बात है, जब धरती पर राक्षसों का आतंक बढ़ गया था। सभी देवी-देवता मिलकर इस समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे थे। तब भगवान शिव ने माँ दुर्गा से प्रार्थना की, और माँ दुर्गा ने माँ कालरात्रि का रूप धारण किया। माँ कालरात्रि ने अपनी शक्तियों का उपयोग करके राक्षसों का संहार किया। उनकी विजय ने धरती पर सुख और शांति का संचार किया। इस प्रकार, माँ कालरात्रि ने अपने भक्तों के लिए एक नया जीवन और नया आशा का संचार किया।
रक्तबीज एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस था, जो अपने नाम के अनुरूप ही अत्यंत निर्दयी और भयावह था। उसका जन्म एक खास तरह की तपस्या से हुआ था, जिसमें उसने देवी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया। जब देवी ने उससे प्रसन्न होकर वरदान मांगा, तो रक्तबीज ने यह वरदान मांगा कि उसकी रक्त की एक बूंद भी भूमि पर गिरने पर वह पुनर्जन्म लेगा। इसका मतलब यह था कि वह किसी भी लड़ाई में नहीं हार सकता था, क्योंकि उसके रक्त की बूंद से तुरंत ही उसका पुनर्जन्म होता था। रक्तबीज का यह वरदान उसे अजेय बना दिया, और वह धरती पर आतंक फैलाने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया कि देवी-देवता भी परेशान हो गए। सभी देवी-देवताओं ने मिलकर इस समस्या का समाधान करने के लिए माँ दुर्गा से प्रार्थना की।
जब माँ दुर्गा ने देखा कि रक्तबीज का आतंक अत्यधिक बढ़ गया है, तब उन्होंने अपने एक प्रमुख रूप, माँ कालरात्रि, को प्रकट करने का निर्णय लिया। माँ कालरात्रि ने अपनी शक्ति को जागृत किया और राक्षस रक्तबीज का सामना करने के लिए निकलीं। माँ कालरात्रि के प्रकट होने पर राक्षस रक्तबीज ने उनसे चुनौती दी, यह समझते हुए कि वह अजेय है। रक्तबीज ने कहा, “मैं तुम्हें हराने के लिए तैयार हूं, लेकिन जान लो, मेरी एक बूंद रक्त भी अगर भूमि पर गिरी, तो मैं पुनः जीवित हो जाऊंगा।” माँ कालरात्रि ने राक्षस रक्तबीज की चुनौती को स्वीकार किया। उनके सामने खड़े होकर रक्तबीज ने गर्जना की, और माँ कालरात्रि ने उसे अपनी शक्तियों का परिचय देने का निर्णय लिया। माँ कालरात्रि ने अपने चारों हाथों में त्रिशूल, तलवार, और अन्य अस्त्र उठाए। उन्होंने रक्तबीज पर आक्रमण किया। रक्तबीज ने अपनी पूरी शक्ति से प्रतिरोध किया, लेकिन माँ कालरात्रि की शक्ति अविश्वसनीय थी। उन्होंने रक्तबीज को तेजी से वार किया और उसकी हत्या की। लेकिन जैसे ही रक्तबीज का रक्त भूमि पर गिरा, वह पुनर्जन्म लेने लगा। माँ कालरात्रि ने इस समस्या को तुरंत समझ लिया। उन्होंने अपनी बुद्धिमानी का उपयोग किया और सोचा कि इस बार रक्तबीज को हराने का एकमात्र तरीका यह है कि उसके रक्त की एक बूंद भी भूमि पर न गिरने दी जाए। माँ कालरात्रि ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए रक्तबीज के रक्त को अपने शरीर में समाहित कर लिया, जिससे रक्त की एक बूंद भी बाहर नहीं गिर सकी। इस प्रकार, माँ कालरात्रि ने रक्तबीज का संहार कर दिया और उसे उसके अजेयता के वरदान से मुक्त कर दिया।
देवी का महत्व
माँ ने रक्तबीज को पराजित करके यह संदेश दिया कि सत्य और धर्म की जीत होती है। उन्होंने यह साबित किया कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, अगर हम अपनी बुद्धिमानी और साहस का उपयोग करें, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। माँ कालरात्रि का यह कार्य न केवल असुरों का नाश करने के लिए था, बल्कि यह भी दिखाता है कि शक्ति और बुद्धिमानी का सही संयोजन किसी भी दुष्टता को समाप्त कर सकता है।
माँ के प्रति हमारी श्रद्धा और भक्ति हमें जीवन के कठिन समय में संबल देती है। उनके रूप में छिपी शक्ति और करुणा हमें आत्मविश्वास और साहस प्रदान करती है। माँ कालरात्रि की उपासना करके हम न केवल अपने जीवन में सुख और शांति का अनुभव कर सकते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
जय माँ कालरात्रि!