ॐ शैलपुत्र्यै च विद्महे पार्वत्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।
माँ शैलपुत्री (शैल = पर्वत, पुत्री = बेटी) हिंदू धर्म की प्रथम नवदुर्गा और माता पार्वती का शुद्ध रूप हैं। वह हिमालय पर्वत के राजा हिमवत की पुत्री मानी जाती हैं और इन्हें शक्ति का अवतार भी कहा जाता है। माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है और यह योगिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस दिन माँ की पूजा करने से जीवन में शक्ति, स्थिरता, और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
माँ शैलपुत्री नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाने वाली प्रथम देवी हैं। वे महादेवी की एक शुद्ध और पवित्र रूप मानी जाती हैं और देवी पार्वती के अवतार के रूप में प्रकट होती हैं। शैलपुत्री का अर्थ है पर्वत राज हिमालय की पुत्री, जो पर्वतों की राजकुमारी हैं। देवी शैलपुत्री को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे सती, भवानी, पार्वती, और हेमावती। इस लेख में हम माँ शैलपुत्री के इतिहास, उनकी महत्ता, पूजा विधि, और उनके रूपों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
इतिहास
माँ शैलपुत्री को हिन्दू धर्म में अदिपाराशक्ति का अवतार माना जाता है। उनके जन्म के पौराणिक विवरण में उन्हें हिमालय के राजा हिमवत की पुत्री के रूप में वर्णित किया गया है। शैलपुत्री का संबंध देवी पार्वती से है, जो देवी सती के पुनर्जन्म के रूप में मानी जाती हैं। देवी सती से शैलपुत्री का पुनर्जन्म देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। लेकिन उसके पिता, दक्ष प्रजापति, ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती इस अपमान को सहन नहीं कर पाईं और उन्होंने यज्ञ के अग्नि कुंड में स्वयं को बलिदान कर दिया। इस प्रकार सती का जीवन समाप्त हो गया, लेकिन उनका पुनर्जन्म हुआ और वह हिमालय के राजा हिमवत की पुत्री के रूप में शैलपुत्री के नाम से जानी गईं। इस पुनर्जन्म के माध्यम से देवी शक्ति ने अपने रूप को बदलकर दुबारा जन्म लिया, जिससे शक्ति का अनंत चक्र जारी रहा। शैलपुत्री का पुनर्मिलन और विवाह शैलपुत्री ने अपने पुनर्जन्म में भगवान शिव से पुनः विवाह किया, जिससे उनकी शक्ति का समृद्ध रूप सामने आया। इस विवाह के माध्यम से उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिदेवों की शक्ति को संयुक्त किया। शैलपुत्री ने अपने दो हाथों में त्रिशूल और कमल का पुष्प धारण किया, और नंदी बैल पर सवार होकर उनकी स्थिरता और शक्ति का प्रतीक प्रस्तुत किया। उन्होंने देवी सती के बलिदान के बाद पुनर्जन्म लेकर भगवान शिव के साथ फिर से जीवन में शक्ति की अभिव्यक्ति की।
प्रतिमा और रूपांकन
माँ शैलपुत्री का रूप अत्यंत दिव्य और शांतिपूर्ण होता है। उनके माथे पर अर्धचंद्र होता है, जो उनके शांति और सौम्यता का प्रतीक है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प होता है। वे नंदी बैल पर विराजमान होती हैं, जो उनकी दृढ़ता और साहस का प्रतीक है। शैलपुत्री का यह रूप उनकी पूर्णता और शक्ति का परिचायक है। उनके माध्यम से भक्तों को यह संदेश मिलता है कि जीवन में दृढ़ता और साहस के साथ हर समस्या का सामना करना चाहिए। वे योग साधना और आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं, और नवरात्रि के पहले दिन उनकी पूजा करके साधक अपनी साधना की शुरुआत करते हैं।
पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह दिन आध्यात्मिक साधना की शुरुआत का प्रतीक है, और साधक इस दिन अपनी योग साधना का आरंभ करते हैं। माँ शैलपुत्री की पूजा से मनुष्य के अंदर स्थित मूलाधार चक्र का जागरण होता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
कलशस्थापना विधि
माँ शैलपुत्री की पूजा कलशस्थापना से प्रारंभ होती है। कलशस्थापना शक्ति की प्रतीक मानी जाती है और इसे नवरात्रि के पहले दिन किया जाता है। इस प्रक्रिया में, एक मिट्टी के बर्तन में तीन परतें मिट्टी की डाली जाती हैं और उसमें सप्तधान्य के बीज बोए जाते हैं। इसे जल छिड़ककर सिक्त किया जाता है ताकि बीज अंकुरित हो सकें। इसके बाद एक कलश में गंगाजल, सुपारी, चावल, और दुर्वा डाली जाती है। कलश के चारों ओर आम के पत्ते लगाए जाते हैं और इसके ऊपर नारियल रखा जाता है। इस प्रक्रिया को करते समय माँ शैलपुत्री का ध्यान और उनका आह्वान किया जाता है।
माँ शैलपुत्री के मंत्र और प्रार्थनाएं
माँ शैलपुत्री के पूजा में मंत्रों का उच्चारण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। उनका प्रमुख मंत्र है:
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
इस मंत्र के माध्यम से भक्त देवी का ध्यान करते हैं और उनसे कृपा की प्रार्थना करते हैं। मंत्र जाप से मन शांत होता है और भक्त को देवी की कृपा प्राप्त होती है।
Om Devi Shailaputryai Namah॥
प्रार्थना
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्ध कृतशेखराम् ।
वृषारूढाम् शूलधराम् शैलपुत्रीम् यशस्विनीम् ॥
Vande Vanchhitalabhaya Chandrardhakritashekharam।
Vrisharudham Shuladharam Shailaputrim Yashasvinim॥
इस प्रार्थना का अर्थ है: “मैं देवी शैलपुत्री को वंदन करता हूँ, जो इच्छित लाभ प्रदान करती हैं। उनके माथे पर अर्धचंद्र का शेखर है। वे नंदी बैल पर सवार हैं और उनके हाथ में त्रिशूल है। वे यशस्विनी हैं।”
माँ शैलपुत्री का आध्यात्मिक महत्त्व
माँ शैलपुत्री केवल शक्ति की देवी ही नहीं हैं, बल्कि वे आध्यात्मिक जागरण का भी प्रतीक हैं। योग साधना के दृष्टिकोण से माँ शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं। चक्र का जागरण योग साधना की शुरुआत मानी जाती है। इसे जागृत करके साधक आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है और अपने आंतरिक आत्मबल को पहचानता है। मूलाधार चक्र का रंग लाल होता है, जो धरती तत्व का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री इस धरती और प्रकृति की देवी मानी जाती हैं और उनका पूजन धरती के तत्वों से ही किया जाता है। वे प्रकृति, पर्वत, नदियों, और जंगलों की संरक्षिका हैं और उनकी पूजा से मानव को धरती की ऊर्जा का आभास होता है।
योग साधना करने वाले साधक माँ शैलपुत्री का ध्यान करके अपनी साधना की शुरुआत करते हैं। नवरात्रि का पहला दिन योग साधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है और इस दिन साधक माँ शैलपुत्री के रूप में मूलाधार चक्र का ध्यान करते हैं। यह चक्र हमारे अस्तित्व का आधार होता है और इसे जागृत करने से साधक को आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। माँ शैलपुत्री को जागृत करने के बाद साधक अपनी साधना को आगे बढ़ाता है और क्रमशः अन्य चक्रों का जागरण करता है। इस प्रकार माँ शैलपुत्री आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतीक हैं और उनकी पूजा से साधक को आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होती है।
माँ शैलपुत्री
माँ शैलपुत्री का रंग लाल होता है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। उनका तत्त्व धरती है, जो स्थिरता और स्थायित्व का प्रतीक है। धरती का यह तत्त्व मानव जीवन में संतुलन और स्थिरता लाता है और साधक को आत्मशांति प्राप्त होती है। माँ शैलपुत्री का ध्यान करने से साधक के जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है, जिससे वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकता है।
माँ शैलपुत्री के विभिन्न अवतार
माँ शैलपुत्री ने अपने जीवन में अनेक अवतार धारण किए हैं, जिनमें से प्रमुख हैं:
- सती: देवी सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री, शैलपुत्री का पूर्व जन्म था। उनके द्वारा यज्ञ में स्वयं को बलिदान करने की कथा प्रसिद्ध है।
- पार्वती: सती के पुनर्जन्म के रूप में पार्वती हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं।
- हेमावती: शैलपुत्री के एक अन्य अवतार, जिन्होंने सभी प्रमुख देवताओं को परास्त किया।
- 32 विद्याएँ: माँ शैलपुत्री ने 32 विद्याओं का अवतार धारण किया, जो उनके ज्ञान और शक्ति का प्रतीक हैं।
पूजा के लाभ
माँ शैलपुत्री की पूजा से साधक को कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं। उनकी पूजा से मनुष्य के अंदर साहस, शक्ति, और दृढ़ता का विकास होता है। वे अपने भक्तों को आंतरिक शांति प्रदान करती हैं और उनके जीवन में स्थिरता लाती हैं। माँ शैलपुत्री की पूजा से स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है। वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें जीवन में सफलता प्राप्त करने का आशीर्वाद देती हैं।
माँ शैलपुत्री नवरात्रि की प्रथम देवी हैं और उनका पूजन आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। वे साहस, शक्ति, और स्थिरता की देवी हैं और उनकी पूजा से जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त होती है। माँ शैलपुत्री का ध्यान करके साधक अपनी योग साधना की शुरुआत करता है और अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है। माँ शैलपुत्री की कृपा से हमें जीवन में हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है और वे हमें सफलता के मार्ग पर अग्रसर करती हैं। नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा से हम अपने जीवन में शक्ति, साहस, और शांति का संचार कर सकते हैं।