श्यामा माई मंदिर, दरभंगा (Shyama Mai Mandir, Darbhanga)

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भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक विविधता ने देश भर में अनगिनत मंदिरों की रचना की है, जो भक्ति और समृद्धि का प्रतीक हैं। इनमें से एक है “श्यामा माई मंदिर” जो भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित दरभंगा जिले में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास, भक्ति भाव, और भगवान श्यामा के प्रति श्रद्धा भरा हुआ है। इस पोस्ट में हम “श्यामा माई मंदिर” की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे, जिससे आप इस पावन स्थल के विचारशील वातावरण में डूब सकते हैं।

श्यामा काली मंदिर, दरभंगा: देवी का अद्वितीय धाम
बिहार के दरभंगा जिले में स्थित मां काली के धाम “श्यामा काली मंदिर” एक अद्वितीय स्थल है जहां मां काली की पूजा वेदिक और तांत्रिक दोनों विधाओं से की जाती है। इस मंदिर का इतिहास अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है और यहां के आयोजनों और त्योहारों में एक अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव होता है।

धारोहर और इतिहास:
श्यामा काली मंदिर का निर्माण दरभंगा के राजा महाराजा रमेश्वर सिंह की चिता के ऊपर किया गया था, जो खुद एक साधक राजा थे। मंदिर का नाम “रमेश्वरी श्यामा माई” के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर की स्थापना 1933 में दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने की थी। इस मंदिर में मां काली की मूर्ति ने पैरिस से आई थी और इसका इतिहासिक महत्व है। मां काली की मूर्ति का विस्तार हिंदी वर्णमाला के समरूप है जो सृष्टि का प्रतीक है।

पूजा विधि और तात्कालिक घटनाएँ:
मंदिर में मां काली की मूर्ति के दाहिने ओर महाकाल और बाएं ओर बटुकभैरव देव की विशाल मूर्ति स्थित है। मां की गर्दन में मुण्डमाला है जिसमें हिंदी वर्णमाला के अक्षरों का संबर है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह इसलिए है क्योंकि हिंदी वर्णमाला सृष्टि का प्रतीक है। मंदिर में होने वाली आरती का विशेष महत्व है और यहां आने वाले भक्त घंटों तक मंदिर आरती में शामिल होने का इंतजार करते हैं। नवरात्रि के दौरान भक्तों की संख्या बढ़ती है और यहां एक मेला भी होता है।

कथाएँ:
इस मंदिर में मां काली की पूजा वेदिक और तांत्रिक दोनों विधाओं से की जाती है। आमतौर पर हिन्दू धर्म में विवाह के एक वर्ष बाद ही जोड़ा श्मशान घाट नहीं जाता है, लेकिन इस श्मशान घाट पर बने इस मंदिर में न केवल नए विवाहित आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं, बल्कि यहां विवाह भी किए जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार श्यामा माई माता सीता के रूप में हैं। राजा रमेशर सिंह के सेवक ललदास ने “रामेश्वरी चरित मिथिला रामायण” में इसे स्पष्ट कीया है। यह माना जाता है कि रामायण, वाल्मीकि द्वारा रचित, से उत्पन्न हुआ है। इसके अनुसार, रावण की हत्या होने के बाद, माँ सीता ने भगवान राम को यह कहते हुए कि जो सहस्रानंद को मारेगा, वही सच्चा नायक होगा।

इस पर भगवान राम ने सहस्रानंद को मारने के लिए बाहर निकला। युद्ध के दौरान, भगवान राम को सहस्रानंद ने एक तीर से घायल किया। मां सीता ने इस पर बहुत रूपी अश्रुधारा करते हुए सहस्रानंद को मार दिया। माँ का रंग क्रोध से काला हो गया। कतिपय समय बाद भी, उसका क्रोध शांत नहीं हुआ, इसलिए भगवान शिव खुद आकर उसे रोकने के लिए आए। जैसे ही उनके पैर भगवान शिव की छाती पर रखे गए, मां बहुत शर्मिंदा हुईं और उनकी जीभ बाहर आ गई। इस मां के रूप की पूजा यहां की जाती है और इसे यहां “काली” नहीं, “श्यामा” कहा जाता है।

लोककथाएं:
इस मंदिर की लोककथाओं में छिपे हुए अद्भुत रहस्यों ने इसे एक अनोखे स्थान बना दिया है। माँ काली के इस अद्वितीय रूप की पूजा ने इसे एक धार्मिक, सांस्कृतिक और विशेषकर तांत्रिक स्थल बना दिया है जिसमें समाहित भक्तों की आत्मा को शांति और आनंद मिलता है।

महोत्सव और मेले:
मां काली के धाम में होने वाले महोत्सव और मेले यहां की धार्मिक और सांस्कृतिक धारा को और बढ़ाते हैं। नवरात्रि के दौरान, यहां नौ दिनों तक विशेष पूजा और कीर्तन होता है, जिसमें लाखों भक्तगण भाग लेते हैं। मां काली की आराधना और भक्ति के इस अद्वितीय अवसर पर, जब रात्रि जागरण और विभिन्न सांस्कृतिक क्रियाएँ होती हैं, यहां के लोग आत्मा की ऊँचाईयों को छूने का अवसर प्राप्त करते हैं।

समापन:
श्यामा काली मंदिर एक अद्वितीय स्थल है जो धार्मिकता, सांस्कृतिक धरोहर और लोककथाओं के साथ सजीव है। इस मंदिर का दौरा करने से मां काली के शक्तिशाली प्रत्यारोपण से ही नहीं, बल्कि इसकी अद्वितीयता से भी हमें एक अनूठा और आद्यात्मिक अनुभव होता है। इस मंदिर की महिमा और इसकी कथाएं हमें हमारे सांस्कृतिक धरोहर की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करती हैं और हमें एक अद्वितीय भूमि का अनुभव कराती हैं जो धारा, ध्यान, और आध्यात्मिकता का मेलजोल है।

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